#100women achiever santosh dahiya
हरियाणा... और ख़ासतौर पर इस सूबे का देहात महिलाओं के साथ दो़यम दर्जे के बर्ताव के लिए देश-दुनिया में एक स्याह तस्वीर पेश करता रहा है। लड़कियों के जन्म और ज़िंदा रहने के फ़ैसले जहां मर्दों की इच्छा पर निर्भर करते हैं। महिलाओं की अभिव्यक्ति का पक्ष हो या फिर आधी आबादी की आज़ादी या झूठी शान के लिए आॅनर किलिंग, यह तमाम पहलु हरियाणा का माहौल लड़कियों के माक़ूल बनने से बिगाड़ते रहे हैं। ऐसे प्रतिकूल सामाजिक वातावरण में एक गांव के साधारण से परिवार की बेटी पूरे हरियाणा की महिलाओं की बुलंद आवाज़ बन जाए तो यह हस्ती अपने आप में असाधारण हो जाती है। इस शख़्सियत का नाम है डाॅ. संतोष दहिया।
हरियाणा में झज्जर ज़िले के डीघल गांव में जन्मी डॉ. सन्तोष दहिया आज हरियाणा की महिलाओं की वह आवाज़ बन चुकी है, जिसे खाप के चबूतरों पर हरियाणा की चौधर पूरी शिद्दत के साथ सुनती है। दरअसल खाप पंचायतें सदियों से चला आ रहा, वह सामाजिक अदारा है, जहां समाज के मसलों पर फ़ैसले और फ़रमान सुनाए जाते हैं। खापों के पुरुष खांचे में कभी किसी औरत को भी शामिल किया जा सकता है? इस प्रश्न की कभी किसी ने कल्पना तक का साहस नहीं किया, लेकिन डाॅ. संतोष दहिया आधी आबादी के मुद्दों की पैरोकार बनकर आज खाप पंचायतों के चबूतरे पर दृढता से बैठती हैं। उन्हें सर्वजात सर्वखाप के महिला प्रकोष्ठ की पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का गौरव हासिल है। डाॅ. संतोष दहिया आॅनर किलिंग के ख़िलाफ़ उठने वाली हरियाणा की सबसे दमदार आवाज़ बन चुकी है। उन्होंने खापों की छवि बदलने और उन्हें उदारता प्रदान करने के लिए जाना जाने लगा है। हरियाणा की आधुनिक बेटी की समाज से क्या-क्या उम्मीदें हैं, यह डाॅ. संतोष दहिया की नुमाइंदगी ने हरियाणा के चौधरियों तक पहुँचा दिया है।
1st president of sarv khaap maha panchayat
Professor at kurukshetra university
दरअसल संतोष दहिया खुद संघर्षों की भट्ठी में तपता आया वह सोना है, जिसे अब कुंदन कहा जाना क़तई अतिश्योक्त नहीं होगा। संतोष दहिया का बचपन भी गांव में जन्मी एक मेहनतकश उस सामान्य सी लड़की की ही तरह था जिसे आज भी भारतीय गांवों में हज़ारों-लाखों लड़कियां जीने को मजबूर हैं। स्कूल में पढ़ने के लिए जाने से पहले घर का सारा काम करना, पशुओं का चारा-पानी करना, उनके बाड़े की साफ़-सफाई करना, गोबर के उपले बनाना, कुएं से सिर पर पानी लाना, शाम में स्कूल से आने के बाद पशुओं को जोहड़ से पानी पिलाकर भी लाना आदि-आदि। संतोष दहिया के बचपन में रोजमर्रा की यही दिनचर्या थी। लेकिन बचपन से ही साहसी संतोष इस सारे काम को भी इतने मन से करतीं थीं कि उन्होंने इन कामों को हुनर तराशने की ज़रिया बना लिया।
जैसे गांव के जोहड़ में पशु को नहलाते-नहलाते उनकी पूंछ पकड़ कर, कब वो खुद तैरना सीख गई पता ही नहीं चला। संतोष को अपने इस हुनर का अंदाज़ा तब हुआ जब स्कूलों की राज्यस्तरीय तैराकी प्रतियोगिता में वो चार स्वर्ण पदक जीत गईं। लेकिन ग्रामीण भारतीय सभ्यता के परिवेश में विदेशी स्टाइल स्विमिंग सूट को सभ्य नहीं मानते थे इसलिए संतोष के तैराक बनने में रुकावट खड़ी हुई और उनको यह स्विमिंग छोड़नी पड़ी। लेकिन संतोष ने भी घुटने नहीं टेके और दूसरे पारंपरिक खेलों में भाग लेकर अपने गांव और प्रदेश का नाम रोशन किया। वाॅलीबाल में राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया और इसी जज्बे की बदौलत डॉ. संतोष दहिया आज एशियन वूमैन बॉक्सिंग कमीशन की सदस्या है। कई खेल फ़ेडरेशन और एसोसिएशन के साथ जुड़ी हुई हैं।
President of women Boxing Association
Member of Asian Women Boxing commission
कन्या भ्रूण हत्या के लिए कुख्यात हरियाणा प्रदेश में डाॅ. संतोष दहिया ने बेटियों को बचाने का बड़ा आंदोलन खड़ा किया है। आज डॉ संतोष दहिया जहां कहीं भी किसी महिला को जब किसी दर्द या पीड़ा में देखती है तो वहां स्वंय पहुंचकर उन्हें उस दुख से निजात दिलवाने की हर संभव कोशिश करती हैं। समाज की उपेक्षा झेल रही इन महिलाओं की आवाज को बलुंद करने के लिए डॉ दहिया ने अखिल भारतीय महिला शक्ति मंच का गठन भी किया है। इस मंच से कोई भी महिला अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ सकती हैं। आज डॉ दहिया दिलो-जान से इस कार्य में लगी हैं। दुश्वारियों भरे भारतीय ग्रामीण परिवेश के जीवन से विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर के पद तक पहुंचने की जीवन यात्रा में एक औरत को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, डॉ दहिया इस बात को बाखूबी जानती हैं। उनकी जीवन यात्रा को देख ये कहा जा सकता है कि उन्हें इस बात की भी गहरी समझ है कि आखिर ग्रामीण भारतीय समाज में एक लड़की होने का क्या मतलब होता है। खाप के चबूतरे तक पहुंचने के पीछे यही दिलचस्प कहानी है। डॉक्टर दहिया शुरू दिन से ही खाप-पंचायतों के बारे में बड़ी उत्सुक रही| गुलामी के दौर में विदेशी शासकों और आक्रान्ताओं से महिला-सुरक्षा के चलते जिन खाप-चबूतरों पर महिलाओं का चढ़ना बंद कर दिया गया था, आज़ादी के बाद डॉक्टर संतोष उन्हीं खाप-चबूतरों की पहली महिला राष्ट्रीय अध्यक्षा बनी| और खाप-मान्यता के समाज में महिलाओं की अग्रणीय आवाज बनी और कन्या-भ्रूण हत्या, घरेलू-हिंसा व् हॉनर किलिंग जैसे मामलों को प्रमुखता से उठाया| महिलाओं की बनी आवाज:
1) समाज में कन्या भ्रूण-हत्या रोकने हेतु सैंकड़ों गाँवों का दौरा करके ग्रामीण महिलाओं, विश्वविधालयों के छात्र-छात्राओं, पंचायतों, बुजुर्गों को "कन्या-भ्रूण" हत्या ना करने और रोकने की शपथ दिलाकर पचास हजार से अधिक हस्ताक्षर करवा चुकी हैं| इसी अभियान के तहत हाल ही में मुज़ादपुर गाँव जहां 2013-14 के साल में 1000 लड़कों पर 273 लड़कियां पैदा हुई हैं, को गोद लिया है|
2) आॅनर किलिंग के ऊपर भी जगह-जगह पर लोगों को जागरूक करती हैं क्योंकि संतोष का मानना है कि सभ्य समाज में ऐसे अमानवीय अपराधों के लिए कोई स्थान नहीं है| यह आवाज़ वह खाप के चबूतरे से भी मजबूत पैरोकारी के साथ उठाती हैं।
3) घरेलू-हिंसा रोकने हेतु कपल-काउंसलिंग के जरिये कानूनी तौर तक उलझे हुए बड़े पेचीदा केस जिनमें दहेज के मामले, मारपीट के मामले, घर की अशांति के मामले आदि के सैंकड़ों केस सुलझा चुकी हैं| उजड़ने के कगार पर पहुंच चुकी गृहस्थियों को उन्होंने अपनी सकारात्मक पहले से बसाया।
4) देश की गुलामी के दौर में शुरू हुई श्रापित प्रथाओं में से एक "पर्दा-प्रथा" ऐसी प्रथा है जिस पर अभी तक किसी ने खास तवज्जो नहीं दी थी| जबकि देश की बेटियां केवल प्रदेश और देश ही नहीं अपितु अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं| वो आज उम्दा पर्वतारोही, पायलट, वैज्ञानिक, शिक्षिका, खिलाड़ी व् राजनीतिज्ञ तक बनी हुई हैं, ऐसे में महिलाओं के पर्दे को जारी रखना बेमानी हो जाता है| इसी सोच के तहत हरयाणा राज्य को इस श्राप से मुक्त करवाने हेतु 30/04/2014 को कुरुक्षेत्र के पीपली गाँव से "हमारा बाणा, पर्दामुक्त हरयाणा" अभियान की शुरुवात की|
5) बेटियों की शिक्षा: डॉक्टर संतोष दहिया का मानना है कि लड़कियों को बारहवीं तक शिक्षा जरूर ग्रहण करनी चाहिए ताकि उन्हें कानून, अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान हो सके| डॉक्टर दहिया ने इसको एक अभियान की तरह लिया जिसके तहत प्रदेश के कई स्कूलों का दौरा कर लड़कियों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर रही हैं|
6) महिला मतदाताओं को इलेक्शनों के वक्त बांटे जाने शराब और पैसे के विरुद्ध जागरूक करना: डॉक्टर संतोष दहिया इलेक्शनों में मतदाताओं को नोट व् शराब के बदले वोट लेने की सोच के बिलकुल खिलाफ हैं| इसी के तहत उन्होंने विगत लोकसभा इलेक्शन 2014 में "मूसल-बेलन ब्रिगेड बनाई" जिसने परिवर्तन का काम किया और चुनाव में शराब के प्रलोभन के ख़िलाफ़ माहौल तैयार किया। ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सकें.
Achievement of Dr Santosh Dahiya
सम्मान: इन विलक्षण कार्यों व् सोच से प्रभावित होकर डॉक्टर संतोष दहिया को काफी सरकारी व् सामाजिक मंचों और संगठनों ने सम्मानित किया है|महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार ने डॉ संतोष दहिया को महिलाओं के हक़ों के लिए काम करने के लिए देश की सशक्त महिला के रुप 22 जनवरी 2016 को सम्मानित किया है।यह सम्मान राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणब मुखर्जी एवम महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी जी ने दिया है।27 दिसम्बर 2015 को दिल्ली के परिवहन मंत्री श्री गोपाल राय ने हक एक्सप्रेस लीडरशिप अवार्ड से दिल्ली के श्रीफोर्ट ओडिटोरियम मे सम्मानित किया । भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल, रुश्तम-ए-हिन्द राजयसभा सदस्य श्री दारा सिंह, हरयाणा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र हुड्डा, हिमाचल-प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रेमकुमार धूमल, चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत, केंद्रीय ग्रामीण विकास व् पंचायत मंत्री चौधरी वीरेंदर सिंह, राजस्थान के सैनिक कल्याण राज्यमंत्री श्री बृजेन्द्र ओला, हरयाणा की बाल व् महिला कल्याण मंत्री कविता जैन, पूर्व जस्टिस लोकायुक्त प्रीतमपाल, पूर्व उप-प्रधानमंत्री मॉरिसियस श्री अनिल बेंचू , जस्टिस सम्भुनाथ श्रीवास्तव, प्रमुख लोकायुक्त छत्तीसगढ़, राज्यसभा सांसद श्री विजय तरुण द्वारा समय-समय पर सम्मानित किया गया|
स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रही इन महिलाओं के हक़ों के लिए चर्चाएं तो बहुत होती हैं लेकिन ज़मीन पर काम कम ही नज़र आता है। ऐसे में डॉ संतोष दहिया की ये पहल एक उम्मीद जगाती है कि एक दिन आयेगा जब गांव की उस अंतिम महिला की आवाज़ को भी सुना जायेगा….जो पर्दे में हैं, जो आंखे झुकाए बेबस खड़ी है, जो मीलों दूर से सिर पर पानी ढोते हुए दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह पिस रही है। डॉ संतोष दहिया को हरियाणा की रूढ़िवादी सामाजिक परम्परा में महिलाओं के प्रति विकट वर्जनाओं को तोड़ने और रिवायत को बदलने का अहम श्रेय जाता है .
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Haryana
India
डॉ संतोष दहिया : पूरे हरियाणा की महिलाओं की बुलंद आवाज़
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