Sunday, 13 March 2016

श्रीमती शशि पुरवार : एक चुप सौ को हरावे



                 
                        शशि पुरवार का जन्म  इंदौर  (म. प्र.) में हुआ था एवं उनकी  शिक्षा इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से हुई. शशि गुप्ता  के  नाम से  पुराना  परिचय था जो  शादी के बाद शशि पुरवार की नयी पहचान के रूप में स्थापित हुआ।    
                    शशि पुरवार स्वाभाव से थोड़ी अंतर्मुखी  है, इसी कारण अपनी इच्छाओं व अधिकारों को कभी माँगना नहीं आया।  उनकी लड़ाई सदैव  रूढ़िवादी विचारधारा  रही है।   खासकर ऐसे लोगों से जो  महिलाओं के लिए संकीर्ण विचार  रखते थे. लड़कियों को पढ़ाकर क्या करेंगे उन्हें तो चूल्हा चौका ही संभालना है। बेटियाँ दूसरे घर की अमानत होती हैं शादी के लिए थोड़ा पढ़ाओ, इसी सोच के साथ परवरिश की जाती थी और यही अमानत ससुराल में परायी नार कहलाती है । उस वक़्त पढ़ी लिखी लड़कियाँ तेज मानी जाती थी जो परिवार नहीं संभाल सकती थी. लड़के लड़की में भेद कायम था. ऐसी परिस्थिति से कई बार  रूबरू होना पड़ता था। १२ वी  के बाद चुपचाप  नेवी की परीक्षा दी और  उसमे चयनित भी हुई, उस समय उस क्षेत्र में लड़कियां अपवाद ही थी और उन्हें उस अपवाद का हिस्सा बनने का  मौका भी नहीं  दिया गया। शिक्षा अपने अलग अलग रूप में आगे बढ़ती रही. शिक्षा में  उन्होंने बीएससी, एम एम और तीन वर्ष का हॉनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में किया।  पढाई के साथ साथ उन्होंने मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के रूप कार्य  का अनुभव भी लिया, इसीलिए  नियमित कॉलेज  नहीं जाने के कारण एम एस सी  की जगह एम ए किया।   
         
            शशि पुरवार का  बचपन अपने नाना  के साथ व्यतीत हुआ था, उनके विचारों का उनके जीवन पर बहुत  प्रभाव पड़ा था. उनके विचारों से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही। वह कहती में  कि उनके नाना सदैव कहते थे कि एक चुप सौ को हरावे,  चुप रहने का तात्पर्य अन्याय सहना नहीं था अपितु  शांत रहकर भी अपने अधिकारों के लिए लड़ा जा सकता था।  जीवन को हँसते हुए हर परिस्थिति में जीना ही सीखा था। लड़ाई व्यक्ति विशेष से न होकर रूढ़िवादी विचारधारा व समाज से थी, सदैव यही प्रयास रहता था कि कभी न कभी इनमे बदलाव जरूर आएगा। रूढ़िवादी लोगों को बदलना इतना आसान नहीं होता है, वे अपनी मुख्य धारा से पृथक नहीं हो पाते हैं।  
                       १३ वर्ष की उम्र में  जीवन के रंगो को पन्नों पर उकेरना शुरू किया था, परिजनों को उनके लेखन के बारे में  ज्ञात नहीं था, किन्तु स्कूल  व कॉलेज में  उनके लेखन की सदैव  चर्चा  हुई। शिक्षा के समय वह अपने विचारों को वहां की पत्रिकाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करती थीं. स्वाभाव से हँसमुख होने के  कारण उनकी गंभीर संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ने शिक्षकों को सदैव आश्चर्यचकित किया। संवेदना के इस पहलू  से रूबरू होने के बाद उन्हें  सभी का बहुत आशीष मिला।  खेल ,नृत्य व एनसीसी के विशेष दल की  छात्रा होने के कारण  वह पहले से ही चर्चित थी. एक बार उनकी अंग्रेजी की अध्यापिका ने कहा था " shashi -- she will turn the table any time " . यह शब्द आज तक अंर्तात्मा में गूँजते है। उस  उम्र का जोश लोगों को  प्रेरित करता था. कई लोगों की प्रेरणा भी बनी जिनके स्नेह ने  उन्हें  आगे बढ़ने के  लिए प्रेरित भी किया।  लेखन एक हॉबी के रूप में शुरू हुआ था जो आज उनकी जिंदगी बन गया है।  उनकी साधना - पूजा है।

  

         

 
                             इसी संघर्ष में कई ऐसे रूढ़िवादी लोगों से सामना भी हुआ जिन्होंने अंग्रेजी झाड़ू, नयी हवा  वगैरह ऐसे नामों से  सुशोभित किया, एक बहु - बेटी की सीमा सिर्फ चार दीवारी के भीतर होती है. उनके विचारों का कोई मोल नहीं होता है। गृहणी के लिए लोगों  के मन में उतना सम्मान नहीं होता है।  लोगों को लगता है, गृहणीयाँ  कुछ नहीं करती है.  यह भाव हृदय  को कष्ट देता था।  शादी में  बाद पारिवारिक जिम्मेदारी के तहत  नौकरी नहीं की, कॅरिअर को भूलना पड़ा, किन्तु रूढ़िवादिता के खिलाफ संघर्ष चलता रहा. हिंदी भाषी होने कारण अहिन्दी भाषी लोगों के विचारों रूबरू हुई, और हिंदी में कार्य करने की दृढ़ इक्छा बलबती हो गयी। समाज में यह बदलाव लाना बेहद जरुरी  था।  लड़ाई आसान न थी,  कागज और कलम  अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बने। बेटियां या गृहणी चाहे तो बहुत कुछ कर सकती हैं। दृढ़ इक्छाशक्ति व सहनशीलता जीवन के हर संघर्ष में काम आई।

                   जीवन के इसी संघर्ष में एक पल ऐसा भी आया जब लड़ाई खुद से थी। शरीर ने मन से विरोध किया और  शरीर का नियंत्रण समाप्त हो गया. मन  सोचता कुछ था और  शरीर जबाब कुछ देता था, डाक्टरों ने अलग अलग नाम दिए, किसी ने ब्रेन स्ट्रोक कहा तो किसी ने स्पोंडोलिटिस तो कभी वर्टिगो, वगैरह वगैरह किन्तु  रिजल्ट शून्य था। जिंदगी जैसे दवा और मशीनों  के बीच सिमट गयी थी, वह पल बेहद अवसादकारी थे. अंत में यही निर्णय निकला कि जीवन ऐसे ही व्यतीत करना होगा। स्थिति कभी भी नियंत्रण से बाहर हो जाती थी, जीवन काटना नहीं था उसे जीना था, इसी जद्दोजहत में ३-४  वर्ष निकल गए,  ऊपर से सामान्य दिखने वाली बीमारी अंदर से भयावह थी, क्यूंकि मूल  कारण ज्ञात नहीं था।  ४ वर्ष तक पेपर नहीं पढ़ा, लिखना तो दूर की बात थी। समाचार पत्र की खबरें पतिदेव सुना देते थे, इस संघर्ष में उनके पति एवं बेटी के सहयोग से धीरे धीरे यह संघर्ष पार किया।  लेकिन उन पलों को पार करना जैसे एक एक दिन एक युग के समान बीत रहा था।  फिर चुपचाप पुनः कागज- कलम को अपना अभिन्न अंग बनाया. शब्दों को  पढ़ने  के लिए धूप चश्मे का सहारा लेना पड़ता था। शुरूआती दिनों  में स्वास्थ के  लिए  लिखने पढ़ने का विरोध भी सहना पड़ा  किन्तु उस समय मकसद बीमारी से विजय पाना था। अंतरजाल से भी जुडी थी वहां पर सक्रीय होने  के  लिए  धूप का चश्मा साथी बना, उस समय आँखों पर रौशनी भी सहन नहीं होती थी। जिंदगी जहाँ परिस्थिति  से जूझ  रही थी वहीँ दृढ़ इच्छाशक्ति  जीत रही थी। सामाजिक विसंगतियों ने मन  को सदैव व्यथित किया है, कलम विसंगतियों की परतें उधेड़ने  के पुनः तैयार थी।  अंतरजाल  पर पाठकों से सीधा संपर्क स्थापित से जुड़ने के बाद पाठकों का असीम स्नेह पुनः प्राप्त हुआ. हौसलों को पंख लगे और उस असीम स्नेह ने आज नया आसमान प्रदान किया है।  हिंदी में कार्य करते हुए कई सम्मान प्राप्त हुयें है।
                  विशेष   २०१५ में महिला बाल विकास मंत्रालय, भारत  द्वारा भारत की टॉप १०० महिला अचीवर्स में चयनित हुई। २२  जनवरी २०१६ को  राष्ट्रपति आ. प्रणव मुखर्जी  के साथ राष्ट्रपति भवन में दोपहर के भोज में  आमंत्रित व सम्मानित हुईं।  कर्म को अंततः आगे बढ़ने का नया मार्ग मिला है.


  --- शशि पुरवार (   लेखिका १०० वूमेन अचीवर्स ) 
परिचय --
 नाम ---  शशि पुरवार
जन्म तिथि    ----    २२ जून १९७३
जन्म स्थान   ---    इंदौर ( म.प्र.)
शिक्षा----  स्नातक उपाधि ---- बी. एस. सी.(विज्ञान )
             स्नातकोत्तर उपाधि -  एम.ए ( राजनीति  शास्त्र )
                   (देविअहिल्या विश्वविद्यालय,इंदौर )
  हानर्स  डिप्लोमा इन कंप्यूटर साफ्टवेयर (NIIT)
भाषा ज्ञान- हिंदी अंग्रेजी,मराठी
प्रकाशन  ------
 कई प्रतिष्ठित समाचारपत्र और पत्रिकाओं व साहित्यिक पत्रिकाओ, अंतरजाल  पत्रिकाओं में  रचनाओं नियमित प्रकाशन होता रहता है. कई साझा संग्रहों में शामिल है। नवगीत संग्रह, व अन्य २ संग्रह का  शीघ्र प्रकाशन
 सम्मान 
१ 
हिंदी विश्व संस्थान और कनाडा से प्रकाशित होने वाली प्रयास पत्रिका के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित देशभक्ति प्रतियोगिता में २०१३ की विजेता. सम्मान २०१३
२ अनहद  कृति काव्य प्रतिष्ठा सम्मान - २०१४ -२ ०१५
३) राष्ट्रभाषा सेवी सम्मान अकोला - २०१५
४ )  हिंदी विद्यापीठ भागलपुर से विद्यावाचस्पति सम्मान - २०१६
५ )मिनिस्ट्री ऑफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट द्वारा  भारत की टॉप १०० महिला  अचीवर्स का सम्मान २०१६।
 ६) माननीय प्रेजिडेंट  प्रणव मुखर्जी द्वारा २२ जनवरी २०१६ राष्ट्रपति भवन में विशेष भोज हेतु आमंत्रित और सम्मानित
 कहानी, कविता, लघुकथा, काव्य की अलग अलग विधाए - गीत, नवगीत,  दोहे, कुण्डलियाँ, गजल, छन्दमुक्त, तांका, चोका, माहिया, हाइकु , व्यंग और लेखों के माध्यमसे जीवन के बिभिन्न रंगों को उकेरना पसंद है. सपने नाम से एक ब्लॉग भी लिखती है.
bloghttp://sapne-shashi.blogspot.com

 संपर्क -
emailshashipurwar@gmail.com


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About Me

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Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723